1.जैव प्रक्रम (LIFE PROCESSES)
प्रस्तावना : जैव प्रक्रम क्या है?
INTRODUCTION : WHAT ARE LIFE PROCESSES
सजीव और निर्जीव के बीच विभिन्नता के मौलिक कारण इस प्रकार हैं
(i) सजीवों में संगठन (organisation) के विभिन्न स्तर (levels) पाये जाते हैं जो सरलतम भी हो सकते हैं और जटिलतम भी। सरलतम जीव प्राय: एककोशिकीय (unicellular or acellular) होते हैं। ये एककोशिकीय सूक्ष्मजीव अत्यन्त सूक्ष्म घटकों से बने होते हैं और वे सूक्ष्मघटक अणुओं से। समान कोशिकाएँ ऐसे समूहों की रचना करती हैं जो अलग-अलग कार्यों के लिए विशिष्ट होते हैं, इन्हें ऊतक कहते हैं। ऊतकों (tissues) से अंग (organs) बनते हैं और अंगों से अंगतन्त्र (organ systems)। संगठन के ऐसे कोई स्तर निर्जीवों में नहीं पाये जाते हैं।
(ii) सजीवों में विशिष्ट जैविक लक्षण (biological features) पाये जाते हैं जैसे-भोजन ग्रहण करना, साँस लेना, वहन (transport), वर्ण्य पदार्थों का परित्याग करना, वृद्धि करना एवं गति करना। पौधों में हम गति के अलावा सभी लक्षण पाते हैं परन्तु कुछ सूक्ष्म पौधे जैसे वॉलवॉक्स (volvox) गति भी करते हैं। पौधे भी सजीव हैं। वे हरे होते हैं क्योंकि उनके अन्दर पर्णहरित (chlorophyll) होता है। मौलिक रूप से पौधों की रचना भी अणओं से ही हुई है और अणु सदा गतिशील होते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि पौधों में आन्तरिक गतियाँ होती हैं। पौधों के अंगों की बाह्य गतियाँ जैसे लाजवन्ती की पत्तियों का मुरझाना; हमें स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। परन्तु विषाणुओं (Viruses) में गति केवल तब दिखाई पड़ती है जब वे किसी दूसरे जीव के शरीर में होते हैं। वे केवल संक्रमण के समय सजीव
प्रतीत होते हैं। यही कारण है कि विषाणुओं के सजीव होने अथवा निर्जीव होने पर अभी तक विवाद है।
(iii) सजीव अपने शरीरों की मरम्मत (repair) और उनका अनुरक्षण (maintenance) करते हैं। पर्यावरण की परिस्थितियाँ उनकी सुसंगठित संरचना को विघटित करने का प्रयत्न करती हैं। यदि ऐसा हो जाय तो जीव की मृत्यु हो जायेगी। परन्तु सजीवों के अन्दर अनुरक्षण निरंतर चलता रहता है। इसके लिए सभी सजीव बाहरी माध्यमों से भोजन के साथ ऊर्जा ग्रहण करते हैं।
सजीवों का भोजन ग्रहण करना तथा उसके द्वारा शरीर का निर्माण एवं शारीरिक क्रियाओं का संचालन पोषण कहलाता है।
शरीर के बाहर से ली गई ऑक्सीजन द्वारा भोजन के विघटन से ऊर्जा प्राप्त करना श्वसन कहलाता है।
श्वसन के लिए ऑक्सीजन को ग्रहण करना एवं इसके फलस्वरूप बनी कार्बन डाइऑक्साइड का परित्याग करना एककोशीय सक्ष्मजीवों में साधारणतः विसरण (diffusion) द्वारा हो जाता है। ऐसा इसलिए हो पाता है कि ऐसे जीवों की पूरी कोशिका पर्यावरण के सीधे सम्पर्क में होती है। बहुकोशीय जीवों की रचनाएँ जटिल होती हैं और वे पर्यावरण के सीधे सम्पर्क में नहीं होती हैं। इसलिए उनकी ऑक्सीजन की आवश्यकता विसरण द्वारा पूरी नहीं हो सकती है।
भोजन एवं ऑक्सीजन की आवश्यकता जटिल जीवों के पूरे शरीर को होती है। साथ ही जैविक क्रियाओं में बने अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना भी एक समस्या है। अत: जटिल जीवों में एक सुव्यवस्थित वहनतन्त्र होता है। सूक्ष्मजीवों में तो ये सारे कार्य विसरण द्वारा ही सम्पादित हो जाते हैं। ये सारी क्रियायें और प्रक्रम जीवन और शरीर का अनुरक्षण करते हैं।
वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं, जैव प्रक्रम कहलाते हैं (All the processes that maintain the body of an organism collectively, are called as life processes)। पोषण (Nutrition), श्वसन (Respiration), वहन (Transport) एवं उत्सर्जन (Excretion)
ऐसे प्रक्रम हैं जो शरीर का अनुरक्षण करते हैं। अत: इन्हें जैव प्रक्रम (life processes) कहते हैं।
जीवन के अन्य प्रक्रम जैसे नियंत्रण एवं समन्वयन, जनन, आनुवंशिकता एवं विकास इत्यादि अन्य प्रक्रम भी सजीवों से सम्बन्धित हैं परंतु ये प्रक्रम शरीर या जीवन के अनुरक्षण से सीधा सम्बन्ध नहीं रखते हैं। अत: इन्हें जैव प्रक्रम नहीं कहा जाता है।
जीवधारियों के शरीरों में होनेवाली वे सभी प्रक्रियाएँ जिनके कारण उनका अस्तित्व कायम रहता है, जैव-प्रक्रियाएँ (life-processes) कहलाती हैं। वे प्रक्रियाएँ हैं—पोषण, प्रकाश-संश्लेषण, श्वसन, पदार्थों का आन्तरिक परिवहन, उत्सर्जन, जनन, नियंत्रण और समन्वयन।
ये जैव-प्रक्रियाएँ सभी स्तरों के जीवधारियों में किसी-न-किसी रूप में अवश्य पायी जाती हैं।
जीव विज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत जैव-प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है, ‘शरीर क्रिया विज्ञान’ (Physiology) कहलाती है।
इसके दो भाग हैं :-
(i) पादप शरीर क्रिया विज्ञान या पादप कार्यिकी (Plant Physiology)
(ii) जन्तु शरीर क्रिया विज्ञान या जन्तु कार्यिकी (Animal Physiology)
A. भोजन क्या है? (What is food?)
वे सभी आवश्यक पदार्थ जो किसी जीव के शरीर में अवशोषित होने के पश्चात् शरीर की रचना एवं टूट-फूट की मरम्मत, वृद्धि एवं विकास, जनन क्षमता का विकास, ऊर्जा उत्पादन तथा जैविक क्रियाओं का संचालन और नियमन (regulation) आदि कार्य करते हैं, परन्तु जीव-शरीर को कोई हानि नहीं पहुँचाते हैं—भोजन (food) कहलाते हैं।
कार्यों के अनुसार भोजन को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है
(1) शरीर निर्माता (Body Builders)
जैसे—प्रोटीन और खनिज
(2) ऊर्जादायक (Energy Liberators)
जैसे-कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) और वसा (Fats)
(3) विनियंत्रक (Regulators)
जैसे-विटामिन (Vitamins) और खनिज (Minerals)
भोजन जीव और जनन के लिए आवश्यक है क्योंकि इससे शरीर का पोषण होता है। परन्तु
पोषण क्या है?
पोषण एक जटिल प्रक्रम है जिसके अन्तर्गत कोई जीवधारी भोजन ग्रहण करता है, जिसके द्वारा शरीर-रचना, टूट-फूट की मरम्मत एवं अन्य सभी जैविक क्रियाओं का संचालन तथा नियमन होता है।
B. सजीव अपना पोषण कैसे प्राप्त करते हैं? (How do organisms obtain their nutrition?)
सभी सजीवों को पदार्थ और ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इस आवश्यकता की पूर्ति वे विभिन्न प्रकार से करते हैं
(i) कुछ जीव अकार्बनिक स्रोतों से भोजन प्राप्त करते हैं। हरे पौधे और कुछ जीवाणु इस श्रेणी के जीव हैं जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। उन्हें स्वशेषी (Autotrophs) कहते हैं।
(ii) हरे पौधों के अलावा सभी जन्तु जटिल पदार्थों का उपयोग करते हैं। वे इन पदार्थों का अपघटन करके उन्हें सरल पदार्थों में तोड़ते हैं और उनका प्रयोग शरीर की वृद्धि और विकास के लिए करते हैं। ऐसा करने के लिए वे जैव उत्प्रेरकों (Bio-catalysts) का उपयोग करते हैं। इन जैव उत्प्रेरकों को इंजाइम (Enzyme) कहते हैं।
वे जीव जो स्वपोषियों एवं अन्य सजीवों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं परपोषी (Heterotrophs) कहलाते हैं।
परपोषियों का जीवन प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में स्वपोषियों पर ही आधारित होता है।
स्वपोषी पोषण (Autotrophic Nutrition)
वह प्रक्रम जिसमें सजीव बाह्य पर्यावरण से कार्बन डाइऑक्साइड और जल लेकर सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपनी कोशिकाओं में उपलब्ध पर्णहरित की सहायता से कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण करते हैं, स्वपोषी पोषण कहते हैं।
स्वपोषी पोषण ‘प्रकाश-संश्लेषण’ प्रक्रम द्वारा होता है।
प्रकाश-संश्लेषण क्या है? (What is Photosynthesis?)
पेड़-पौधों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड, जल एवं पर्णहरित के माध्यम से सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ग्लूकोज का संश्लेषण करना प्रकाश-संश्लेषण कहलाता है।
इस प्रक्रम में ऑक्सीजन गैस मुक्त होती है जो जल के अपघटन से निकलती है।
ग्लूकोज का उपयोग ऊर्जा उत्पादन में किया जाता है। शेष ग्लूकोज कार्बोहाइड्रेट बन जाता है या फिर यह स्टार्च के रूप में पौधे के भिन्न-भिन्न भागों में संचित कर लिया जाता है।
प्रकाश-संश्लेषण को एक सम्पूर्ण रासायनिक समीकरण के रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जाता है
6CO2 + 6HO _ पर्णहरित
→ CH1206 + 602 कार्बन डाइऑक्साइड जल सूर्य का प्रकाश
ग्लूकोज ऑक्सीजन (6 अणु) (6 अणु)
(1 अणु) (6 अणु)
(A) प्रकाश-संश्लेषण हेत कच्ची सामग्री (Raw Materials for Photosynthesis)
प्रत्येक हरित लवक युक्त पत्ती पौधे का भोजन उत्पादक कारखाना (Food-factory) होती है जो प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम द्वारा ग्लूकोज का उत्पादन करती है। इस फैक्टरी में पत्ती का क्लोरोप्लास्ट ही प्रमुख मशीनरी है जो सूर्य के प्रकाश को ईंधन के रूप में प्रयोग करती है। इस फैक्टरी में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और जल (HO) को कच्ची सामग्री (Raw material) के रूप में प्रयोग किया जाता है एवं ऑक्सीजन (O2) इसके उपोत्पाद (By-product) है।
प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम में उत्पादित ग्लूकोज का परिवहन तैयार उत्पाद (Finished Product) स्टार्च या कार्बोहाइड्रेट के रूप में फ्लोएम ऊतकों द्वारा पूरे पौधे में किया जाता है।
जल का परिवहन पूरे पौधे में जाइलम ऊतकों द्वारा होता है तथा CO2-02, का आदान-प्रदान पत्तियों पर पाये जाने वाले रन्ध्रों (stomata) से होकर सम्पादित किया जाता है।
(B) प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया-विधि (Mechanism as process of photosynthesis)
प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम के समय निम्नांकित घटनाएँ घटित होती हैं
(i). पत्तियों के अन्दर पाये जाने वाले हरित लवक (chloroplast) सूर्य के प्रकाश के विकिरण ऊर्जा (Radiant) को अवशोषित करते हैं।
(ii). विकिरण ऊर्जा का रासायनिक ऊर्जा (chemical energy) में रूपान्तरण तथा जल के अणुओं का हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में टूटना।
(iii). कार्बन डाइऑक्साइड से ग्लूकोज का बनना।
कुछ विशेष पौधों में प्रकाश-संश्लेषण के उपर्युक्त प्रक्रम की सभी अवस्थाए इसी क्रम में नहीं होती हैं। उदाहरण के लिए मरुस्थलीय पौधे (जैसे नागफनी) रात में कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण करते हैं तथा मौलिक एसिड (malic acid) नामक एक मध्यस्थ उत्पाद बनाते हैं। यह मध्यस्थ यौगिक दिन में कार्बन डाइऑक्साइड को मुक्त कर देता है जिसकी सहायता से पर्णहरित विकिरण ऊर्जा अवशोषित करके प्रकाश-संश्लेषण का अन्तिम उत्पाद अर्थात् ग्लूकोज बनाता है।
जल के अपघटन के कारण उपोत्पाद के रूप में ऑक्सीजन मुक्त होती है।
(C) प्रकाश-संश्लेषण का स्थान (Site of Photosynthesis)
प्रकाश-संश्लेषण पत्तियों के मीजोफिल (Mesophyll) ऊतकों की खम्भ कोशिकाओं (Palisade cells) में होता है। प्रत्येक खम्भ कोशिका में लगभग 300 या अधिक हरित लवक पाये जाते हैं। इन्हें सरलतापूर्वक प्रकाशीय सूक्ष्मदर्शी से देख सकते हैं। प्रत्येक हरित लवक का व्यास लगभग 4um से 6um के बीच होता है। परन्तु इनकी सूक्ष्म रचना इलेक्टॉन सूक्ष्मदर्शी से ही दिखायी पड़ती है।
(D) प्रकाश-संश्लेषण में ऊर्जा रूपान्तरण (Energy Transformation in Photosynthesis)
प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम में सूर्य की विकिरण ऊर्जा (Radiant Energy) को ग्रहण करके उसे रासायनिक ऊर्जा में बदला जाता है। यह रासायनिक ऊर्जा स्टार्च के अणुओं के बीच रासायनिक बन्धनों में सुरक्षित रहती है। यही ऊर्जा शाकाहारी जन्तुओं में भोजन के साथ पहँचती है और आहार-श्रृंखला के माध्यम से जीवमण्डल के सभी उपभोक्ता जीवों के शरीरों में पहुँचती रहती है। इस प्रकार सौर ऊर्जा ही प्रायः सम्पूर्ण जीवमंडल की ऊर्जा का आधार है।
(E) प्रकाश-संश्लेषण का महत्त्व
(Importance of Photosynthesis)
प्रकाश-संश्लेषण पौधों के जीवन के लिए तो आवश्यक है ही यह सम्पूर्ण सृष्टि के लिए भी आवश्यक है। सभी परपोषी जीव अपने भोजन और ऊर्जा के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में पौधों पर ही आश्रित होते हैं। पौधे प्रकाश-संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन मुक्त करते हैं, जो जीवन का आधार है। ये वातावरण में ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड के बीच संतुलन भी स्थापित करते हैं। विभिन्न प्रकार के जीवाश्म ईंधनों (जैसे कोयला) की ऊर्जा का आधार प्रकाश-संश्लेषण ही है।
(F) प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Photosynthesis)
प्रकाश-संश्लेषण को अनेक बाह्य (External) और आन्तरिक (Internal) कारक प्रभावित करते हैं। बाह्य कारकों में तापक्रम, प्रकाश की तीव्रता, जल और वायु में CO2 का सान्द्रण प्रमुख हैं। वायु-प्रदूषण जैसे कारखानों की चिमनियों से निकलने वाली उड़न राख (fly ash) एवं धुआँ एवं अन्य गैसें प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रम को बहुत अधिक हानि पहुँचाती हैं। वायु-प्रदूषण के कारण होने वाली अम्लीय वर्षा से पौधों की पत्तियाँ झुलस जाती हैं जिससे उनमें प्रकाश-संश्लेषण करने की क्षमता नहीं रह जाती है। पर्णहरित की मात्रा, पत्तियों में अन्य पदार्थों का जमाव और कोशिकाओं की भौतिक- रासायनिक अवस्थाएँ प्रकाश-संश्लेषण को प्रभावित करने वाले आंतरिक कारक हैं।
प्रकाश-संश्लेषण की दर कम तीव्रता के प्रकाश में अधिक होती है और अधिक तीव्रता के प्रकाश में कम हो जाती है। उच्च ताप भी प्रकाश-संश्लेषण की दर को घटा देता है। यदि पौधे में जल की आपूर्ति कम हो रही हो तो प्रकाश-संश्लेषण की दर बढ़ जाती है। परन्तु ऐसा एक सीमा तक ही होती है। इस सीमा से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड हो जाने पर प्रकाश-संश्लेषण की दर कम हो जाती है।
पौधे कार्बन डाइऑक्साइड कैसे प्राप्त करते हैं?
(How do plants receive carbondioxides?)
प्रकाश-संश्लेषण के लिए आवश्यक कार्बन डाइऑक्साइड विसरण क्रिया द्वारा रन्ध्रों से होकर प्रवेश करती हैं। प्रकाश-संश्लेषण में उपोत्पाद के रूप में मुक्त होनेवाली ऑक्सीजन इन्हीं रन्ध्रों से होकर बाहर निकल जाती है।
रन्ध्र क्या है- पत्तियों की सतहों पर पाये जाने वाले छिद्र जिनका खुलना और बन्द होना द्वार कोशिकाओं (guard cells) द्वारा नियन्त्रित होता है और जो खली हुई अवस्था में गैसों के विनिमय तथा वाष्पोत्सर्जन में सहायक होते हैं; रन्थ कहलाते हैं। ये पत्तियों के अलावा तनों तथा जड़ों पर भी पाये जाते हैं। रन्ध्रों से होकर भाप के रूप में जल की हानि होती है जिसे वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहते हैं।
जल की हानि को रोकने के लिए बहुत-से पौधे अपने रन्ध्रों को बन्द कर लेते हैं।
(Opening and Closing of Stomata) (1) दिन के समय प्रकाश-संश्लेषण के कारण द्वार कोशिकाओं में स्टार्च जमा हो
जाता है। अत: परासरण के कारण उनके भीतर अधिक मात्रा में जल जमा हो जाता है जिससे वे फूलकर रन्ध्रों को बन्द कर देती हैं। परासरण (osmosis) किसे कहते हैं- किसी प्लाज्मा झिल्ली से होकर पदार्थों का उच्च सान्द्रण वाले स्थान से निम्न सान्द्रण वाले स्थान की ओर जाना परासरण कहलाता है।
(2) रात्रि काल में द्वार कोशिकाओं का स्टार्च अलग हो जाता है अथवा उपापचय (metabolism) से क्रियाओं में खर्च हो जाता है। अत: बहि:परासरण (exosmosis) के कारण उनका जल बाहर निकल जाता है और वे पिचक जाती हैं। इससे रन्ध्र खुल जाते हैं।
कोशिका के अन्दर अथवा जीव के अन्दर होने वाली समस्त जैविक-रासायनिक (Bio-chemical) अभिक्रियाओं को सम्मिलित रूप में उपापचय कहते हैं।
विषमपोषी पोषण (Heterotrophic Nutrition)
सजीव अपने पर्यावरण के प्रति अनुकूलित होते हैं। उनका अनुकूलन इस बात पर भी निर्भर करता है कि वे किस अथवा कैसे स्रोत से पोषक पदार्थों को प्राप्त करते हैं। पौधे स्थिर होते हैं तथा वे जड़ों के द्वारा पोषक पदार्थों को सोखकर अपनी पत्तियों में (अथवा तनों में) अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। इसीलिए पत्तियों को भोजन-फैक्ट्री (Food-factory) कहते हैं। परन्त
जिन जीवधारियों में पर्णहरित नहीं होता है वे अन्य जीवधारियों से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। ऐसे जीवधारियों को परजीवी (Parasite) कहते हैं। परजीवी पौधे भी हो सकते हैं जैसे अमरबेल (cuscuta) और जन्तु भी जैसे खटमल। परजीवी अपने पोषी जीव को मारकर भोजन नहीं प्राप्त करते हैं।
पोषण की वह विधि जिसमें कोई जीव अपना भोजन स्वयं न बना पाने के कारण अन्य जीवों पर आश्रित रहता है, विषमपोषी पोषण कहलाती है। हरे पौधों एवं कुछ अन्य स्वपोषियों के अलावा प्राय: सभी सजीव विषमपोषी ही होते हैं।
मनुष्य में पोषण (Nutrition in Human Being)
मनुष्य में भोजन का अन्तर्ग्रहण (ingestion) मुख के माध्यम से सम्पादित होता है तथा उसका पाचन पूर्ण विकसित आहारनली में होता है। आहारनली से पाचक रसों का स्राव करने वाली ग्रन्थियाँ जुड़ी होती हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण आहारनली और पाचक ग्रन्थियों के सम्मिलित रूप को पाचनतन्त्र कहते हैं।
मनुष्य के पाचनतन्त्र के भाग हैं: मुख, आमाशय, पक्वाशय, छोटी आँत (क्षुद्रांत्र) एवं बड़ी आँत या वृहद्रांत्र या कोलॉन। पाचन में सहायक प्रमुख ग्रन्थियाँ हैं : पित्ताशय (gall bladder) एवं अग्न्याशय (pancreas)। आमाशय की आन्तरिक भित्ति में जठर ग्रन्थियाँ (gastric glands) पायी जाती हैं।
मनुष्य में भोजन का पाचन (Digestion of food in man)
(1) मुख में पाचन : भोजन का अन्तर्ग्रहण मुखगुहा में होता है। यहाँ ठोस भोजन को दाँतों की सहायता से महीन टुकड़ों में बदला जाता है। इसी समय लार में पाया जाने वाला
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