अर्थव्यवस्था एवं इसके विकास का इतिहास
15 अगस्त, 1947 को मिली आजादी से पहले लगभग 200 वर्षों तक भारत अंग्रेजी शासन का गुलाम था । उस समय भारत को “सोने की चिड़ियाँ” कहा जाता था ।
● अर्थव्यवस्था का परिचय : अंग्रेजी शासन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को अपना एक उपनिवेश (Colony) बनाकर रखा था । उन्होंने “फूट डालो और शासन करो” (Divide and Rule) की नीति अपनाकर भारत को अपना दास बनाकर रखा। ब्रिटिश शासन के पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान होने के बावजूद उद्योग, व्यापार, यातायात, आधारभूत संरचना में अन्य कई महत्वपूर्ण देशों की तुलना में अच्छी स्थिति में थी लेकिन शोषण एवं दमनकारी नीतियों के कारण भारत की स्थिति जर्जर हो गयी । गरीबी, अशिक्षा, अंधविश्वास, विषमता तथा शोषण का साम्राज्य था । अंग्रेजी शासन के लगभग 200 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई विकास नहीं हुआ । प्रति व्यक्ति आय की स्थिरता, कृषि पर जनसंख्या की बढ़ती हुई निर्भरता, हस्तशिल्प उद्योगों का पतन तथा उसके बाद लगभग नष्ट हुई औद्योगिक व्यवस्था इस बात को पूरी तरह स्पष्ट कर देते हैं कि अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया।
● उपनिवेश (Colony) : जब कोई भी देश किसी बड़े समृद्धिशाली राष्ट्र के शासन के अंतर्गत रहता है और उसके समस्त आर्थिक एवं व्यावसायिक कार्यों का निर्देशन एवं नियंत्रण शासक देश का होता है तो ऐसे शासित देश को शासक देश का उपनिवेश कहा जाता है ।
👉 भारत करीब 200 वर्षों तक ब्रिटिश शासन का एक उपनिवेश था ।
● आर्थिक क्रियाएँ क्या है ?
उत्तर : हमारी वे सभी क्रियाएँ, जिनसे हमें आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रियाएँ कहलाती है।
■ अर्धव्यवस्था एक ऐसा तंत्र या ढाँचा है जिसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ सम्पादित की जाती है, जैसे- कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन तथा संचार आदि । ये आर्थिक क्रियाएँ एक ओर तो विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ एवं सेवाओं का संपादन कर है तो दूसरी ओर लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती हैं ताकि वे अपनी आवश्यकताअ की संतुष्टि हेतु देश में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय कर सके ।
👉 इस तरह प्रत्येक अर्थव्यवस्था दो प्रमुख कार्य संपादित करती है-
(i) लोगों की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करती है ।
(ii) लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान करती है ।
👉 कुछ अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया है
आर्थर लेविस के अनुसार : अर्थव्यवस्था का अर्थ ” किसी राष्ट्र के संपूर्ण व्यवहार से होता है जिसके आधार पर मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए वह अपने संसाधनों का प्रयोग करता है ।
ब्राउन के अनुसार ” अर्थव्यवस्था आजीविका अर्जन की एक प्रणाली है।” Economy is the system of earning livelihood.
दूसरे शब्दों में, ( ” अर्थव्यवस्था आर्थिक क्रियाओं का एक ऐसा संगठन है जिसके अन्तर्गत लोग कार्य करके अपनी आजीविका चलाते हैं ।” )
👉 संक्षेप में, “अर्थव्यवस्था समाज की सभी आर्थिक क्रियाओं का योग है ।
👉 अर्थव्यवस्था की संरचना या ढाँचा (Structure of Economy) : अर्थव्यवस्था की संरचना का मतलब विभिन्न उत्पादन क्षेत्रों में इसके विभाजन से है। चूँकि अर्थव्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आर्थिक क्रियाएँ अथवा गतिविधियाँ सम्पादित की जाती हैं, जैसे – कृषि, उद्योग, व्यापार, बैंकिंग, बीमा, परिवहन, संचार आदि । इन क्रियाओं को मोटे तौर पर तीन भागों में बाँटा जाता है ।
(i) प्राथमिक क्षेत्र ( Primary Sector )
(ii) द्वितीय क्षेत्र (Secondary Sector)
(iii) तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र (Tertiary Sector or Service Sector)
(i) प्राथमिक क्षेत्र- प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है। इसके अंतर्गत कृषि, पशुपालन, मछली पालन, जंगलों से वस्तुओं को प्राप्त करना जैसे व्यवसाय आते हैं।
(ii) द्वितीयक क्षेत्र- द्वितीयक क्षेत्र को औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है । इसके अंतर्गत खनिज व्यवसाय, निर्माण कार्य, जनोपयोगी सेवाएँ, जैसे- गैस और बिजली आदि के उत्पादन आते हैं।
(iii) तृतीयक क्षेत्र – तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है । इसके अंतर्गत बैंक एवं बीमा, परिवहन, संचार एवं व्यापार आदि क्रियाएँ सम्मिलित होती हैं ।
ये क्रियाएं प्राथमिक क्षेत्र एवं द्वितीयक क्षेत्रों की क्रियाओं को सहायता प्रदान करती हैं।
● अर्थव्यवस्था के प्रकार (Types of Economy ) :
विश्व में निम्न तीन प्रकार की अर्थव्यवस्था पाई जाती है –
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था ( Capitalist Economy ) – पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के पास होता है जो इसका उपयोग अपने निजी लाभ के लिए करते हैं । जैसे- अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों में ।
2 समाजवादी अर्थव्यवस्था ( Socialist Economy ) – समाजवादी अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व एवं संचालन देश की सरकार के पास होता है जिसका उपयोग सामाजिक कल्याण के लिए किया जाता है।
चीन, क्युबा आदि देशों में समाजवादी अर्थव्यवस्था है।
विगत वर्षो में भूमंडलीकरण एवं उदारीकरण के कारण समाजवादी अर्थव्यवस्था का स्वरूप बदलने लगा है ।
मिश्रित अर्थव्यवस्था ( Mixed Economy ) – मिश्रित अर्थव्यवस्था पूँजीवादी तथा समाजवादी अर्थव्यवस्था का मिश्रण है । मिश्रित अर्थव्यवस्था वहं अर्थव्यवस्था है जहाँ उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सरकार तथा निजी व्यक्तियों के पास होता है ।
भारत में मिश्रित अवस्था है ।
यह अर्थव्यवस्था पूँजीवाद एवं समाजवाद के बीच का रास्ता है । (It is a mid way between capitalism and socialism.)
अर्धव्यवस्था का विकास : भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास की स्थिति किसी एक समय की चमत्कारिक स्थिति नहीं है । इसका एक अपना इतिहास है |
अर्थव्यवस्था के विकास के लिए हम निम्नलिखित दो स्थितियों का विवेचन करेंगे –
(i) आर्थिक विकास तथा (ii) मौद्रिक विकास
(i) आर्थिक विकास : इसकी एक सर्वमान्य परिभाषा नहीं दी जा सकती है । फिर भी आप इसकी कुछ महत्वपूर्ण परिभाष को जान लें ।
प्रो० रोस्टोव के अनुसार- ” आर्थिक विकास एक ओर श्रम शक्ति में वृद्धि की दर तथा दूसरी ओर जनसंख्या में वृद्धि के बीच का सम्बन्ध है ।
प्रो० मेयर एवं बाल्डविन ने बताया है कि “आर्थिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दीर्घकाल में किसी अर्थव्यवस्था की वास्तविक राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है ।
आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था के समस्त क्षेत्रों में उत्पादकता का ऊँचा स्तर प्राप्त करना होता है ।
● समावेशी विकास ( Inclusive Growth) :
उत्तर : आर्थिक विकास की जिस पद्धति या प्रक्रिया से समाज के सभी वर्गों का जीवन स्तर ऊँचा होता जाए तथा समाज का कोई भी वर्ग विकास के लाभ से अछूता नहीं रहे तो ऐसे ही विकास की क्रिया को समावेशी विकास (Inclusive Growth) कहा जाता है ।
👉 आर्थिक विकास, आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक प्रगति में क्या अंतर है ?
श्रीमती उर्सला हिक्स (Mrs. Urshala Hicks) के अनुसार, “वृद्धि (Growth) शब्द का प्रयोग आर्थिक दृष्टि से विकसित देशों के संबंध में किया जाता है जबकि विकास् (Development) शब्द का प्रयोग विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में किया जा सकता है।
डॉ० ब्राईट सिंह ने भी लिखा है कि Growth शब्द का प्रयोग विकसित देशों के लिए किया जा सकता है ।
● सतत् विकास (Sustainable Development ) : सतत् विकास का शाब्दिक अर्थ है- ऐसा विकास जो जारी रह सके, टिकाऊ बना रह सके। सतत् विकास में न केवलं वर्तमान पीढ़ी बल्कि भावी पीढ़ी के विकास को भी ध्यान में रखा जाता है।
बुण्डलैंड आयोग ने सतत् विकास के बारे में बताया है कि ” विकास की वह प्रक्रिया जिसमें वर्तमान की आवश्यकताएँ, बिना भावी पीढ़ी की क्षमता, योग्यताओं से समझौता किए, पूरी की जाती है ।
मैड्डीसन नामक एक अर्थशास्त्री ने बताया है कि धनी देश में आय का बढ़ता हुआ स्तर ‘आर्थिक वृद्धि’ (Economic Growth) का सूचक होता है जबकि निर्धन देशों में आय का बढ़ता हुआ स्तर ” आर्थिक विकास” (Economi Development) का सूचक होता है |
प्रायः ” आर्थिक प्रगति” के स्थान पर “आर्थिक वृद्धि” या “आर्थिक विकास” शब्दों का प्रयोग होता है । आर्थिक वृद्धि व आर्थिक विकास एक-दूसरे के अर्थ में भी प्रयुक्त होते हैं।
“विकास” शब्द में “वृद्धि” शब्द का अर्थ भी निहित है । अतः आर्थिक विकास, आर्थिक वृद्धि तथा आर्थिक प्रगति में कोई खास अंतर नहीं है। प्रो० लेविस ( Lewis ) की भी यही राय है ।
● आर्थिक नियोजन (Economic Planning) : आर्थिक नियोजन का अर्थ एक समयवद्ध कार्यक्रम के अन्तर्गत पूर्व निर्धारित सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अर्थव्यवस्था में उपलब्ध संसाधनों का नियोजित समन्वय एवं उपयोग करना है ।
● योजना आयोग ( Planning Commission) : भारत में एक योजना आयोग है जो आनेवाले पाँच वर्षों के लिए आर्थिक विकास की योजना बनाता है ।
👉भारत में योजना आयोग का गठन 15 मार्च, 1950 को किया गया ।
👉योजना आयोग का इसके पदेन अध्यक्ष देश के प्रधानमंत्री होते हैं ।
👉योजना आयोग के प्रथम अध्यक्ष प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे ।
👉भारत में योजना आयोग में 8 सदस्य होते हैं ।
● पहली पंचवर्षीय योजना 1951 1956
● दूसरी पंचवर्षीय योजना 1956-1961
● सातवीं पंचवर्षीय योजना 1985-1990
● दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-2007
● ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना 2007-2012
● राष्ट्रीय विकास परिषद् (National Development Council – N.D.C.) : भारत में राष्ट्रीय विकास परिषद् का गठन 6 अगस्त 1952 को किया गया था । इसका गठन आर्थिक नियोजन हेतु राज्य सरकारों तथा योजना आयोग के बीच तालमेल तथा सहयोग का वातावरण बनाने के लिए किया गया था । राष्ट्रीय विकास परिषद् में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके पदेन सदस्य होते हैं । प्रत्येक पंचवर्षीय योजना बनाने का कार्य योजना आयोग का है और अन्त में यह राष्ट्रीय विकास परिषद् द्वारा अनुमोदित होती है ।
(ii) मौद्रिक विकास वर्तमान इक्कीसवीं शताब्दी में मनुष्य को अनेक प्रकार की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध है । यदि हम इसके पीछे के इतिहास को देखें तो लगता है कि विगत वर्षों में इन सुख-सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए मनुष्यों को कठिन परिश्रम करना पड़ा है । लेकिन बाद में लोगों की आवश्यकताएँ बढ़ती चली गई और उनकी संख्या बढ़ने के कारण अब छोटे-से कस्बे से बढ़कर बड़े गाँव एवं क्षेत्र में मनुष्यों का फैलाव होने लगा । इसी स्थिति में मनुष्य की सोच के आधार पर विनिमय का एक सामान्य इकाई मुद्रा (Money) का प्रादुर्भाव हुआ ।
● कोर बैंकिंग प्रणाली क्या है ?
उत्तर : जब एक व्यक्ति एक स्थान दूसरे स्थान तक बिना विलम्ब के बैंक के माध्यम से पैसे का लेन-देन करता है तो बैंक के इस प्रणाली को कोर बैंकिंग प्रणाली (Core Banking System) कहते हैं ।
● एटीएम (ATM = Automatic Teller Machine) क्या है ?
उत्तर : बैंक के जिस चिह्नित स्थान से हर समय पैसे निकाल की सुविधा होती है उसे हम एटीएम कहते हैं।
👉मौदिक विकास की संक्षिप्त कहानी :
वस्तु विनिमय प्रणाली – वस्तु से वस्तु का लेन-देन
मौद्रिक प्रणाली- मुद्रा से वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय ।
बैंकिंग प्रणाली- बैंक के माध्यम से चेक के द्वारा विनिमय की क्रिया का सम्पादन ।
कोर बैंकिंग प्रणाली के अन्तर्गत एक संकेत से एक व्यक्ति के खाते से दूर अवस्थित दूसरे व्यक्ति को उसी बैंक के माध्यम से पैसा का हस्तांतरण (Transfer)
एटीएम (ATM) प्रणाली– प्लास्टिक के एक छोटे-से कार्ड पर अंकित सूक्ष्म संकेत के आधार पर कहीं भी तथा किसी समय निर्धारित बैंक के केन्द्र से पैसे निकालने की सुविधा ।
डेबिट कार्ड (Debit Card ) – बैंक द्वारा दिया गया प्लास्टिक का कार्ड जिसके द्वारा बैंक में अपनी जमा राशि के पैसे का उपयोग करना ।
क्रेडिट कार्ड (Credit Card) – बैंक द्वारा जारी किया गया प्लास्टिक का एक कार्ड जिसके आधार पर उसके धारक द्वारा पैसे अथवा वस्तु प्राप्त कर लेना।
● आर्थिक विकास की माप एवं सूचकांक :
राष्ट्रीय आय (National Income ) – किसी देश में एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी वस्तुओं एवं सेवा के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है । सामान्य तौर पर जिस देश का राष्ट्र आय अधिक होता है वह देश विकसित कहलाता है और जिस देश का राष्ट्रीय आय कम होता है वह देश अविकसित कहलाता है । राष्ट्रीय आय को आर्थिक विकास का एक प्रमुख सूचक माना जाता है ।
● प्रति व्यक्ति आय (Per capita Income) – राष्ट्रीय आय को देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है,उसे प्रति व्यक्ति आय कहते है ।
● आर्थिक विकास की माप करने के लिए प्रति व्यक्ति आय को सबसे उचित सूचकांक माना जाता है ।
● प्रति व्यक्ति आय देश में रहते हुए व्यक्तियों की औसत आय होता है । विश्व बैंक (World Bank) की विश्व विकास रिपोर्ट (World Development Re- port ), 2006 के अनुसार जिन देशों की 2004 में प्रतिव्यक्ति आय 4,53,000 रुपये प्रतिवर्ष या इससे अधिक है, वह विकसित देश (समृद्ध देश ) है और वे देश जिनकी प्रति व्यक्ति आय 37,000 रुपये प्रतिवर्ष या इससे कम है उन्हें निम्न आय वाला देश ( विकासशील) कहा गया है ।
👉 भारत निम्न आय वर्ग के देश में आता है, क्योंकि भारत की प्रति व्यक्ति आय 2004 में केवल 28,000 रुपये प्रतिवर्ष थी।
● मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) : यह सूचकांक संयु राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) द्वारा महबूब -उल-हक (Mahbub -Ul-Haq) के निर्देशन तैयार की गई पहली मानव विकास रिपोर्ट (Human Development Report) में प्रस्तावित किया गया था ।
👉 यूएनडीपी (UNDP) द्वारा प्रकाशित मानव विकास रिपोर्ट (HDR) विभिन्नदेशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर करती है ।
जहाँ तक मानव विकास सूचकांक (HDI) का प्रश्न है तो इसके तीन सूचक है ।
(i) जीवन आशा, (ii) शिक्षा प्राप्ति तथा (iii) जीवन स्तर
HDI – जीवन आशा सूचकांक + शिक्षा प्राप्ति सूचकांक + जीवन स्तर सूचकांक
👉 भारत, मानव विकास रिपोर्ट 2006 के अनुसार 126 स्थान पर था ।
👉 लिंग विकास सूचकांक (GDI) की दरों में भारत ने 2000 में 105वें क्रम से 2004 में 96 वें क्रम पर आ गया था ।
● राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट (National Human Development Report – UNDP ) : भारत की पहली मानव विकास रिपोर्ट अप्रैल, 2002 में जारी की गई । योजना आयोग द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने 23 अप्रैल, 2002 को नई दिल्ली में जारी किया । रिपोर्ट को भारतीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बताते हुए योजना आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष के० सी० पंत ने कहा था कि राज्यों के लिए योजना आकार तय करते समय इसे आधार बनाया जा सकता है । इस पहली राष्ट्रीय मानव विकास रिपोर्ट (NHDR) में 1981, 1991 तथा 2001 के लिए राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों के HDI मूल्यों का अनुमान लगाया गया था । इस रिपोर्ट में विकास की दरें भिन्न-भिन्न थी । केरल का रैंक सबसे ऊपर था जबकि बिहार, मध्य प्रदेश, आसाम, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश (BIMARU) का रैंक सबसे नीचे था ।
HPI : Human Poverty Index
● आधारिक संरचना (Infrastructure ) : आधारिक संरचना का मतलब उन सुविधाओं तथा सेवाओं से है जो देश के आर्थिक विकास के लिए सहायक होते हैं । वे सभी तत्त्व, जैसे- बिजली, परिवहन, संचार, बैंकिंग, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि देश के आर्थिक विकास के आधार हैं, उन्हें देश का आधारिक संरचना (आधारभूत ढाँचा ) कहा जाता है । किसी देश के आर्थिक विकास में आधारिक संरचना का महत्वपूर्ण स्थान होता है । जिस देश का आधारभूत ढाँचा जितना अधिक विकसित होगा, वह देश उतना ही अधिक विकसित होगा ।
● बिहार विकास की स्थिति :
बिहार का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है । यही बिहार है जहाँ गौतम बुद्ध को प्राप्त हुआ था । महावीर ने शांति का संदेश यहीं दिया था । चन्द्रगुप्त, अशोक, शेरश गुरुगोबिन्द सिंह, बाबू वीर कुँवर सिंह, देशरत्न डॉ० राजेन्द्र प्रसाद का जन्म इसी बिहार में हुआ था । बिहार ही लोकनायक जयप्रकाश ने “संपूर्ण क्रांति” का नारा दिया था । लेकिन वही बिहार आज कई तरह की समस्याओं का शिकार है । यहाँ गरीबी, बेरोजगा भ्रष्टाचार तथा अशांति का माहौल है । साधनों के मामले में धनी होते हुए भी बिहार स्थिति दयनीय है । आज बिहार अति पिछड़े राज्यों में गिना जाता है।
● बिहार के पिछड़ेपन के कारण :
आर्थिक दृष्टि से बिहार के पिछड़ेपन के कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार है –
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या – बिहार में जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। इस चलते विकास के लिए साधन कम हो जाते है अधिकांश साधन जनसंख्या के भरण-पोषण चला जाता है ।
आधारिक संरचना का अभाव – किर भी देश या राज्य के विकास के लिए आधारि संरचना का होना जरूरी होता है । लेकिन बिहारइस मामले में पीछे हैं । राज्य में सड़क, बिज हैं । एवं सिंचाई का अभाव है। साथ ही शिक्षा स्वास्थ्य सुविधाएँ भी कम है। इस वजह से ‘ बिहार में पिछड़ेपन की स्थिति कायम है ।
कृषि पर निर्भरता – बिहार अर्थव्यवस्था पूरी तरह कृषि पर आधारित है । यहाँ की अधिकांश जनता कृषि पर ही निर्भर है। लेकिन हमारी कृषि की भी हालत ठीक नहीं है। हमारी कृषि काफी पिछड़ी हुई है। इसके चलते उपज कम होती है ।
बाढ़ तथा सूखा से क्षति – बिहार में खासकर उत्तरी बिहार में नेपाल से आए जल से बाढ़ आती है । हर साल कम या अधिक बाढ़ का आना बिहार में तय है। पिछले साल 2008 में कोशी बाढ़ का प्रलय हमारे सामने है । इससे कितने जान-माल की क्षति हुई। इस साल 2009 में भी नेपाल से आए जल से बागमती नदी में बाढ़ देखने को मिला। इसके आसपास के इलाके सीतामढ़ी, दरभंगा, मधुबनी आदि जगहों में फसल की काफी बर्बादी हुई ।
औद्योगिक पिछड़ेपन – किसी भी देश या राज्य के लिए उद्योगों का विकास जरूरी होता है । लेकिन बिहार में औद्योगिक विकास कुछ दिखता ही नहीं है। यहाँ के सभी खनि क्षेत्र एवं बड़े उद्योग तथा प्रतिष्ठित अभियांत्रिकी संस्थाएँ सभी झारखण्ड चले गए। इस कार बिहार में कार्यशील औद्योगिक इकाइयों की संख्या नगण्य ही रह गई है।
गरीबी – बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ गरीबी का भार काफी अधिक है । राज्य में प्रतिव्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के आधे से भी कम है। इसके चलते भी बिहार पिछड़ा है बिहार में निर्धनता का दुष्तक है।
खराब विधि व्यवस्था – किसी भी देश या राज्य के लिए शांति तथा सुव्यवस्था जरूरी होती है । लेकिन बिहार में वर्षों तक कानून व्यवस्था कमजोर स्थिति में थी जिसके चर नागरिक शांतिपूर्वक उद्योग नहीं चला पा रहा था । इस तरह खराब विधि व्यवस्था भी बिह के पिछड़ेपन का एक महत्वपूर्ण कारण बन गया है ।
कुशल प्रशासन का अभाव – बिहार की प्रशासनिक स्थिति ऐसी हो गई है जिस पारदर्शिता का अभाव है । इसके कारण आए दिन भ्रष्टाचार के अनेक उदाहरण सामने आए हैं ।
● बिहार में पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निम्न उपाय किए जा सकते हैं- बिहार में आर्थिक विकास की गति को तेज करने के लिए बिहार के पिछड़ेपन को दूर करना काफी जरूरी है ।
👉 पूर्व राष्ट्रपति डॉ० ए० पी० जे० अब्दुल कलाम ने कहा था कि “बिहार के विकास के बिना भारत का विकास संभव नहीं है ।
👉 ” बिहार देश का एक बड़ा राज्य है और इसके विकास की गति में तेजी आने से भारत का विकास भी संभव होगा ।
जनसंख्या पर नियंत्रण – राज्य में तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगाया जाए। परिवार नियोजन कार्यक्रमों को लागू किया जाए । इसके लिए राज्य की जनता एवं खास करके महिलाओं में शिक्षा का प्रचार किया जाए ।
कृषि का तेजी से विकास – बिहार में कृषि ही जीवन का आधार है । अतः कृषि में नए यंत्रों का प्रयोग किया जाए। उत्तम खाद, उत्तम बीज का प्रयोग किया जाए ताकि उपज में वृद्धि लायी जा सके । इस तरह कृषि का तेजी से विकास कर बिहार का आर्थिक विकास किया जा सकता है ।
बाढ़ पर नियंत्रण – बिहार के विकास में बाढ़ एक बहुत बड़ा बाधक है । फसल का बहुत बड़ा भाग बाढ़ के चलते बर्बाद हो जाता है । जानमाल की भी काफी क्षति होती है। उत्तरी बिहार की अधिकांश नदियाँ हिमालय से निकलती है इसलिए नेपाल सरकार के सहयोग से बाढ पर नियंत्रण को सफल बनाया जा सकता है ।
आधारिक संरचना का विकास – बिहार में बिजली की काफी कमी है । अत: बिजली का उत्पादन बढ़ाया जाए। सड़क व्यवस्था में सुधार लाया जाए। शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार लाया जाए जिससे विकास की प्रक्रिया और अधिक आगे बढ़ सके ।
उद्योगों का विकास – बिहार से झारखण्ड के अलग होने से यह राज्य लगभग उद्योग विहीन हो गया था । मुख्यतः चीनी मिलें बिहार के हिस्से में रह गई थी जो अधिकतर बन्द पड़ी थी । लेकिन विगत् कुछ वर्षों से देश के विभिन्न भागों से तथा विदेशों से पूँजी निवेश लाने के अनवरत प्रयास किए जा रहे हैं ताकि वर्तमान में जर्जर अवस्था के उद्योगों का पुनर्विकास किया जा सके ।
गरीबी दूर करना- बिहार में गरीबी का सबसे अधिक प्रभाव है। गरीबी रेखा के नीचे लगभग 42 प्रतिशत से भी अधिक लोग यहाँ जीवन-वसर कर रहे हैं। इनके लिए रोजगार क व्यवस्था की जाए। स्व-रोजगार को बढ़ावा देने के लिए इन्हें प्रशिक्षण (Training) दिया जाएशांति व्यवस्था की स्थापना बिहार में शांति का माहौल कायम कर व्यापारियों विश्वास जगाया जा सकता है तथा आर्थिक विकास की गति को तेज किया जा सकता है।
स्वच्छ तथा ईमानदार प्रशासन – बिहार के आर्थिक विकास के लिए स्वच्छ कुशल तथा ईमानदार प्रशासन जरूरी है ।
केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों का हस्तांतरण – बिहार के विकास के लिए केन्द्र से अधिक मात्रा में संसाधनों के हस्तांतरण (Transfer of Resources) की जरूरत है। कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा देकर उन्हें अधिक मात्रा में केन्द्रीय सहायता दी जाती है। विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त होने के कारण जम्मू एवं कश्मीर, पंजाब, उत्तर-पूर्व के राज्यों को विशेष सहायता मिलती रही है ।
👉 15 नवम्बर 2000 को बिहार से झारखण्ड के अलग हो जाने के बाद खनिज बाहुल्य क्षेत्र झारखण्ड में चले गए और बिहार के पास केवल उर्वरक भूमि तथा कुछ ही उद्योग रह गए ।
👉 गरीबी रेखा (Poverty Line ) – गरीबी को निर्धारित करने के लिए योजना आयोग द्वारा सीमांकन (Border Line) किया गया है । गरीबी रेखा कैलोरी मापदण्ड पर आधारित है । ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन निर्धारित किया गया है । अर्थशास्त्र में गरीबी की माप की यह एक काल्पनिक रेखा है । इस रेखा (Line) से नीचे के लोगों को गरीबी रेखा के नीचे (Below Poverty Line) माना जाता है । इसे संक्षेप में BPL भी कहा जाता है ।
● नरेगा (NREGA) – ग्रामीण रोजगार देने की यह एक राष्ट्रीय योजना है । इसके अन्तर्गत ग्रामीण मजदूरों को साल -कम 100 दिनों के लिए रोजगार देने की व्यवस्था है । इसके लिए कम से लिए न्यूनत्तम मजदूरी निर्धारित है ।
👉 NREGA – National Rural Employment Guarantee Act
Leave a comment