Class 10th economics chapter 2 notes in hindi
👉 आय वह मापदंड है, जिसके द्वारा देश के आर्थिक विकास की स्थिति का आकलन किया जाता है ।
👉देश अथवा राज्य को आय के आधार पर ही उसे विकसित अथवा विकासशील श्रेणी में रखा जाता है ।
👉 भारत के राज्यों में गोवा, दिल्ली और हरियाणा आय के आधार पर ही समृद्धं माना जाता है, वहीं दूसरी ओर आय के आधार पर जहाँ बिहार, उड़ीसा और मध्य प्रदेश विकास के निचली श्रेणी का राज्य माना जाता है ।
● आय
● आय क्या है ?
उत्तर – जब कोई व्यक्ति किसी प्रकार का शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करता है और उस कार्यों के बदले में जो पारिश्रमिक मिलता है, उसे उस व्यक्ति की आय कहते हैं।
👉 इसी प्रकार विश्व के देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसे देशों को समृद्ध मानना और भारत को विकास के निचले पाये पर आय के आधार पर ही रखा जाता है।
👉 जिस प्रकार वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के क्षेत्र में हम देखते हैं कि भूमि का पारिश्रमिक ‘लगान’ के रूप में, श्रम का पारिश्रमिक ‘मजदूरी’ के रूप में, पूँजी का पारिश्रमिक ‘ब्याज’ के रूप में, व्यवस्थापक का पारिश्रमिक ‘वेतन’ के रूप में एवं उद्यमी का पारिश्रमिक ‘लाभ’ या ‘हानि’ के रूप में ही वह उसके आय को प्रकट करता है ।
👉 रैगनर नर्क्स ने गरीबी के कुचक्र की धारणा को बतलाया था। बिहार राज्य भी गरीबी के कुचक्र का शिकार है। जिस कारण बिहार की प्रति व्यक्ति आय भी पूरे भारत वर्ष में न्यूनतम है।
👉 बिहार की आय (Income of Bihar) : बिहार अत्यंत गरीब एवं पिछड़ा हुआ राज्य है, जहाँ गरीबी की व्यापक प्रवृत्ति निरन्तर मौजूद रही है । बिहार राज्य की प्रतिव्यक्ति आय पूरे देशभर में न्यूनतम है, जिसके चलते बचत निम्न स्तर पर है । कम बचत के कारण पूँजी निर्माण दर कम होता है । कम पूँजी निर्माण दर के कारण विनियोग भी कम होता है, जिसके परिणामस्वरूप बिहार में प्रति व्यक्ति आय पुनः निम्न स्तर पर कायम रहती है ।
👉ठीक इसके विपरीत भारत के विकसित राज्यों, जैसे- गोवा, दिल्ली आदि में जहाँ प्रति व्यक्ति आय ऊँचा है, बचत एवं विनियोग अधिक है तथा पूँजी निर्माण दर ऊँचा है, जिसके परिणामस्वरूप हर वर्ष प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हो जाती है ।
👉हम यह जानते हैं कि गरीबी गरीबी को जन्म देती है । इसी कथन को प्रसिद्ध अर्थशास्त्री रैगनर नर्क्स (Ragnar Nurkse) ने गरीबी के कुचक्र (Vicious Circle of Poverty) के रूप में व्यक्त किया है जिसका सार यह है कि गरीब इसलिए गरीब है कि उनमें गरीबी है, गरीबी के कारण उनकी आय कम होती है, अशिक्षा और अज्ञानता के कारण बच्चों की पैदाईश (जन्म) अधिक होता है, फलतः उनकी अगली पीढ़ी अधिक गरीब हो जाती है। गरीबी का यह कुचक्र अनवरत चलता रहता है। इसका आशय यह कि गरीबी ही गरीबी को जन्म देती है ।
👉 भारत के सभी 28 राज्यों एवं 7 केन्द्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय चंडीगढ़ का है, तथा इस मामले में उसका शीर्ष स्थान विगत पाँच वर्षों से बना हुआ है ।
👉 देश के आय के मानक को निर्धारित करने वाली संस्था जिसे डायरेक्टोरेट ऑफ इकोनॉमिक्स एण्ड स्टेटिस्टिक्स (Directorate of Economics and Statistics) कहते हैं ।
👉 जबकि देश के केवल 28 राज्यों में सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य गोवा व दिल्ली को बताया गया है । निदेशालय के ताजा आँकड़ों में गोवा में प्रति व्यक्ति आय 54,850 रुपए तथा दिल्ली में यह 50,565 रुपए बताई गई है ।
👉 बिहार के कुल 38 जिलों में, सर्वाधिक प्रति व्यक्ति आय- पटना एवं न्यूनतम प्रति व्यक्ति आय – शिवहर जिले का है ।
👉 2008-09 में बिहार में केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (C.S.O.) के अनुसार 11.03 प्रतिशत राष्ट्रीय आय में वृद्धि दर है जो गुजरात 11.05 प्रतिशत के बाद दूसरा है ।
● राष्ट्रीय आय
👉 राष्ट्रीय आय का मतलब किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं कुल मूल्य से लगाया जाता है । दूसरे शब्दों में वर्ष भर में किसी देश में अर्जित आय की कुल मात्रा को राष्ट्रीय आय (National Income) कहा जाता है ।
● कुल उत्पादन किसे कहते है ?
उत्तर : जब सभी भौतिक और अभौतिक सेवाओं से प्राप्त आय का कुल रूप से आँकलन किया जाता है, तब उसे कुल उत्पादन कहते हैं ।
● शुद्ध राष्ट्रीय आय किसे हैं ?
उत्तर : उत्पादन के क्रम में किए गए कुल खर्च को घटा देने के बाद जो बचता है, उसे शुद्ध राष्ट्रीय आय (Net National Income) कहते हैं ।
● कुछ अर्थशास्त्रियो द्वारा दिया राष्ट्रीय आय (National Income) का परिभाषा :
(i) प्रो० अलफ्रेड मार्शल के अनुसार ” किसी देश की श्रम पूँजी का उसके प्राकृतिक साधनों पर प्रयोग करने से प्रतिवर्ष भौतिक तथा अभौतिक वस्तुओ विभिन्न प्रकार की सेवाओं का जो शुद्ध समूह उत्पन्न होता है, उसे राष्ट्रीय आय कहते हैं ।
👉 यदि देश की कुल पूँजी विदेश में लगा दी जाती है तो उस प्राप्त आय को भी राष्ट्रीय आय में जोड़ दिया जाता है ।
(ii) प्रो0 पीगू के अनुसार ” राष्ट्रीय लाभांश किसी समाज की वस्तुनिष्ठ अथवा भौतिक आय का वह भाग है, जिसमें विदेशों से प्राप्त आय भी सम्मिलित होती है, और जिसे मुद्रा के रूप में माप हो सकती है ।
(iii) प्रो० फिशर के अनुसार ” वास्तविक राष्ट्रीय आय वार्षिक शुद्ध उत्पादन का वह भाग है, जिसका उस वर्ष के अन्तर्गत प्रत्यक्ष रूप से उपभोग किया जाता है ।
👉 तीसा के भयानक आर्थिक मंदी (1929-33) से उबारने के नियामक प्रो० केन्स ने राष्ट्रीय आय की धारणा को ये सिरे से विचार किया है ।
(iv) प्रो० केन्स के अनुसार ” राष्ट्रीय आय को उपभोक्ता वस्तुओं तथा विनियोग वस्तुओं पर किए गए कुल व्यय के योग के रूप में व्यक्त किया जाता है ।
Y = C+I
जहाँ ,
Y = राष्ट्रीय आय (National Income)
C = उपभोग व्यय (Consumption Expenditure)
I = विनियोग ( Investment)
👉 भारत में सांख्यिकी विभाग के अंतर्गत केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन (Central Sta- tistical Organisation) राष्ट्रीय आय के आँकलन के लिए उत्तरदायी है । इस कार्य में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन का सहायता करता है ।
राष्ट्रीय आय की धारणा
-
- सकल घरेलू उत्पाद
(G.D.P – Gross Domestic Product)
- सकल घरेलू उत्पाद
-
- कुल था सकल राष्ट्रीय उत्पादन
(G.N.P – Gross National Product )
- कुल था सकल राष्ट्रीय उत्पादन
-
- शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन
(N.N.P – Net National Product )
- शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन
(i). सकल घरेलू उत्पाद – किसी देश में किसी दिए हुए वर्ष में वस्तुओं और सेवाओं की जो कुल मात्रा उत्पादित की जाती है, उसे सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहा जाता है । (The total quantity of goods and services produced in an economy in a given year is called Gross Doniestic Product.)
👉 एक देश की सीमा के अन्दर किसी । दी गई समयावधि, प्रायः एक वर्ष (ले वर्ष) में उत्पादित समस्त अंतिम वस्तु तथा सेवाओं का कुल बाजार या मौद्रिक मूल्य, उस देश का सकल घरेलू उत्पादन (GDP) कहा जाता है ।
(ii). शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन – कुल राष्ट्रीय उत्पादन को प्राप्त करने के लिए हमें कुछ खर्च करना पड़ता है । अतः कुल राष्ट्रीय उत्पादन में से इन खर्च को घटा देने से जो शेष बचता है वह शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP) कहलाता है ।
या ,
कुल राष्ट्रीय उत्पादन ( GNP) में से कच्चे माल की पूँजी की घिसावट एवं मरम्मत पर किए गए व्यय, कर एवं बीमा का व्यय घटा देने से जो बचता है उसे ‘शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन’ (NNP) कहते हैं ।
(iii). कुल या सकल राष्ट्रीय उत्पादन – किसी देश में एक साल के अन्तर्गत जितनी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है उनके मौद्रिक मूल्य को कुल राष्ट्रीय उत्पादन (GNP) कहते हैं ।
👉 कुल राष्ट्रीय उत्पादन (GNP) तथा सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में अन्तर है ।
👉 कुल राष्ट्रीय उत्पादन का पता लगाने के लिए सकल घरेलू उत्पादन में देशवासियों द्वारा विदेशों में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को जोड़ दिया जाता है तथा विदेशीयों द्वारा देश में उत्पादित वस्तुओं के मूल्य को घटा दिया जाता है।
भारत का राष्ट्रीय आय ऐतिहासिक परिवेश :
👉 भारत में सबसे पहले सन् 1868 ई० में दादा भाई नौरोजी ने राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाया था । उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Poverty and Un- British Rule in India’ में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 20 रुपए बताया ।
👉 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने अगस्त 1949 ई० में प्रो० पी० सी० महालनोबिस की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय आय समिति का गठन किया था, जिसका उद्देश्य भारत की राष्ट्रीय आय के संबंध में अनुमान लगाना था ।
👉 इस समिति ने अप्रैल 1951 में अपनी प्रथम रिपोर्ट प्रस्तुत की थी ।
👉 इसमें सन् 1948-49 के लिए देश की कुल राष्ट्रीय आय 650 करोड़ रुपए बताई गई तथा प्रति व्यक्ति आय 246.9 रुपए बताई गई ।
👉 सन् 1954 के बाद राष्ट्रीय आय के आँकड़ों का संकलन करने के लिए सरकार ने (केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन C.S.O – Central Statistical Organisation की स्थापना की । यह संस्था नियमित रूप से राष्ट्रीय आय के आँकड़े प्रकाशित करती है, राष्ट्रीय आय के सृजन में अर्थव्यवस्था के तीनों क्षेत्रों का शेष योगदान होता है ।
● प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) :
👉 प्रति व्यक्ति आय – राष्ट्रीय आय में देश की कुल जनसंख्या से भाग देने पर जो भागफल आता है उसे प्रति व्यक्ति आय कहते हैं ।
● राष्ट्रीय आय की गणना (Measurement of National Income) :
(i). राष्ट्र के व्यक्तियों की आय उत्पादन के माध्यम से अथवा मौद्रिक आय के माध्यम से प्राप्त होता है, इसलिए इसकी गणना उत्पादन के योग के द्वारा किया जाता है तो उसे उत्पादन गणना विधि (Census of Production Method) कहते हैं ।
(ii). आय गणना विधि किसे कहते है ?
उत्तर : राष्ट्र के व्यक्तियों की आय के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है तो उस गणना विधि को आय गणना विधि (Census of Income Method) कहा जाता है।
(iii). व्यय गणना विधि किसे कहते है ?
उत्तर : राष्ट्रीय आय की गणना लोगों के व्यय के माप से किया है, राष्ट्रीय आय की मापने की इस प्रक्रिया को व्यय गणना विधि (Census of enditure Method) कहते हैं ।
(iv). मूल्य योग विधि किसे कहते है ?
उत्तर : उत्पादित की हुई वस्तुओं का मूल्य विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्तियों के द्वारा किए गए प्रयास से बढ़ जाता है, ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय आय की गणना को मूल्य योग विधि कहते है ।
(v). व्यवसायिक गणना विधि किसे कहते है ?
उत्तर : व्यवसायिक संरचना के आधार पर राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है,
व्यवसायिक आधार पर की गई गणना को व्यवसायिक गणना विधि कहते है ।
● राष्ट्रीय आय की गणना में कठिनाइयाँ (Difficulties in the Measurem National Income) :
किसी भी राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को जानने के लिए उस देश की राष्ट्रीय आय जानना आवश्यक होता है । राष्ट्रीय आय देश के आर्थिक विकास का सहज मापदंड है, देश के प्रति व्यक्ति आय के योग से निकाला जाता है । राष्ट्रीय आय के आधार पर के विभिन्न देशों को हम विकसित, विकासशील और अर्धविकसित राष्ट्रों की श्रेणी में करते हैं । यद्यपि राष्ट्रीय आय राष्ट्र की आर्थिक स्थिति को आँकने का सर्वमान्य माप भी हमें व्यवहारिक रूप में राष्ट्रीय आय की गणना करने में अनेक कठिनाइयों का सामन करना पड़ता है, जिसे संक्षिप्त में हम निम्न प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं ।
(i) आँकड़ों को एकत्र करने में कठिनाई (Difficulty in collecting data) – पूरे देश के लोगों की आय को हम उत्पादन के रूप में या उसकी आय के रूप में आँकते हैं, और आँकड़ों को एकत्र करने में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं । यदि सही आँकड़े उपलब्ध न हो तो राष्ट्र के विकास की सही स्थिति नहीं प्राप्त होती है ।
(ii) दोहरी गणना की सम्भावना (Possibility of double counting) – पूरे देश के लोगों की उत्पादन अथवा आय के आँकड़ों को एकत्र करना सहज नहीं होता है । भौगोलिक और मानवीय संसाधन की संरचना ऐसी होती है कि कभी-कभी एक ही आय या उत्पादन को दो स्थान पर अंकित कर दिया जाता है, जिस कारण वास्तविक आय से अधिक आय दिखने लगती है।
(iii) मूल्य के मापने में कठिनाई ( Difficulty in measuring the value) – बाजार की स्थिति में प्राय: हम यह देखते हैं कि एक ही वस्तु का कई व्यापारिक स्थितियों से गुजरने के कारण उस वस्तु के मूल्य में विभिन्नता आती है । वस्तु की कीमत की यह विभिन्नता इसलिए होती है कि विक्रेताओं के एक वर्ग से दूसरे वर्ग तक जाने में उसका यातायात का खर्च, विक्रय व्यवस्था (विज्ञापन) का खर्च और विक्रेताओं की मुनाफे की राशि उसमें जुट जाती है । उदाहरण- चीनी का उत्पाद मूल्य कारखानों में कम होता है, जब वह थोक विक्रेताओं के पास जाता है तो उसके मूल्य में बढ़ोत्तरी होती है और अंत में खुदरा विक्रेताओं के पास जाते-जाते उसकी कीमत पूर्व की अपेक्षा काफी अधिक हो जाती है । ऐसी स्थिति में अक्सर विक्रय के दो बिन्दुओं पर अलग-अलग रूप से आँकड़ों को जोड़ने से राष्ट्रीय आय की भ्रामक स्थिति पैदा होने की संभावना रहती है ।
👉 राष्ट्रीय आय की गणना करते समय उपरोक्त बातों पर ध्यान देने से आँकड़ा स्पष्ट, व्यवहारिक और विश्वसनीय प्राप्त होते हैं । जैसा कि हम जानते हैं कि राष्ट्रीय आय के आँकड़ों के संग्रहण के क्रम में यह आवश्यक होता है कि पूरे राष्ट्र के लिए एक ही मापदंड अपनाया जाए जिससे राष्ट्र की आर्थिक स्थिति का सही मूल्यांकन किया जा सके ।
विकास में राष्ट्रीय एवं प्रति व्यक्ति आय का योगदान
किसी भी राष्ट्र की सम्पन्नता अथवा विपन्नता वहाँ के लोगों की प्रति व्यक्ति आय या संयुक्त रूप से सभी व्यक्तियों के आय के योग जिसे राष्ट्रीय आय कहते हैं । के माध्यम से जाना जाता है । राष्ट्र के विकास के लिए जो भी प्रयास किए जाते हैं वह उस राष्ट्र की सीमा क्षेत्र के अन्दर रहनेवाले लोगों की उत्पादकता अथवा उनकी आय को बढ़ाने के माध्यम से की जाती है । वर्तमान युग में प्रत्येक देश अपने-अपने तरीके से विकास की योजना बनाती है, जिसका लक्ष्य राष्ट्र के उपलब्ध साधनों की क्षमता को बढ़ाकर अधिक आय प्राप्त करना होता है ।
राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय में परिवर्तन होने से इसका प्रभाव लोगों के जीवन-स्तर पर पड़ता है । राष्ट्रीय आय वास्तव में देश के अंदर पूरे वर्ष भर में उत्पादित शुद्ध उत्पत्ति को कहते हैं । लेकिन उत्पत्ति में वृद्धि तभी होगी जब उत्पादन में अधिक श्रमि को लगाया जाए । इस प्रकार जैसे-जैसे उत्पादन में वृद्धि होगी वैसे-वैसे बेरोजगार लोगों अधिक रोजगार मिलेगा, श्रमिकों का वेतन बढ़ेगा, उनकी आय बढ़ेगी तथा उनका जीवन – स्तर पूर्व की अपेक्षा बेहतर होगा । इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने से व्यक्तियों का विकास संभव हो सकेगा । यदि इस प्रकार राष्ट्रीय आय के सूचकांक (Index) में वृद्धि होती है तो : लोगों के आर्थिक विकास में अवश्य ही वृद्धि होगी ।
Full Form :
G.D.P – Gross Domestic Product
P.C.I – Per Capita Income
N.S.S.O – National Sample Survey Organistion
C.S.O – Central Statistical Organisation
G.N.P – Gross National Product
N.N.P – Net Natioanl Product
N.I – National Income
E.D.I – Economic development Integration
Leave a comment