संस्कृत श्लोक 1 :
उपनिषदः (वैदिकवाङ्मयस्य अन्तिमे भागे दर्शनशास्त्रस्य सिद्धान्तान् प्रकटयन्ति । सर्वत्र परमपुरुषस्य परमात्मनः महिमा प्रधानतया गीयते । तेन परमात्मना जगत् व्याप्तमनुशासितं चास्ति । स एव सर्वेषां तपसां परमं लक्ष्यम् । अस्मिन् पाठे परमात्मपरा उपनिषदां पद्यात्मकाः पञ्च मन्त्राः संकलिताः सन्ति ।
हिंदी अर्थ – उपनिषद वैदिकवाङ्मय के अंतिम भाग में दर्शनशास्त्र के सिद्धान्तों को प्रकट करते हैं। सभी जगह परमपुरुष का महिमा प्रधानता से गाया गया है। उन परमात्मा के द्वारा सारा संसार व्याप्त है और अनुशासित है। वही सभी तपस्याओं का परम लक्ष्य है। इस पाठ में परमात्मा के विषय में उपनिषदों पद्यात्मक शैली में पाँच मंत्र संकलित हैं ।
संस्कृत श्लोक 2 :
हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये
हिंदी अर्थ – हे सूर्य! ज्योतिर्मय आवरण से ढके हुए सत्य के मुख को सत्य – धर्मवान् को प्राप्त करने के लिए उसे हटा दें ।
संस्कृत श्लोक 3 :
अणोरणीयान् महतो महीयान् आत्मास्य जन्तोर्निहितो गुहायाम् । तमकतुः पश्यति वीतशोको धातुप्रसादान्महिमानमात्मनः ॥
हिंदी अर्थ – प्राणी के हृदयरूपी गुफा में सूक्ष्म से सूक्ष्मतर और महान से महानतम आत्मा स्थित है । बुद्धिमान आत्मा के गौरव को देखते हैं। शोकरहित होते हैं ।
संस्कृत श्लोक 4 :
सत्यमेव जयते नानृतं
सत्येन पन्था विततो देवयानः ।
यैनाक्रमन्त्यृषयो ह्याप्तकामा
यत्र तत् सत्यस्य परं निधानम् ॥
हिंदी अर्थ – सत्य ही जीतता है, असत्य नहीं । सत्य के द्वारा देवताओं के सवारीरूपी मार्ग का विस्तार होता है । इसके द्वारा ही ऋषियों ने सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों को त्याग दिया है । यहाँ वही सत्य है ।
संस्कृत श्लोक 5 :
यथा नद्यः स्यन्दमानाः समुद्रे-
ऽस्तं गच्छन्ति नामरूपे विहाय ।
तथा विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः
परात्परं पुरुषमुपैति दिव्यम् ॥
हिंदी अर्थ – जैसे नदियाँ नाम को छोड़कर प्रवाहित होती हुई समुद्र में विलीन हो जाती है । उसी प्रकार विद्वान नाम रूप से विमुक्त होकर परमतत्त्व में विलीन हो जाते हैं। ( प्राप्त होते हैं )
संस्कृत श्लोक 6 :
वेदाहमेतं गुरुपं महान्तम्
आदित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वाति मृत्युमेति
नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ।।
हिंदी अर्थ – हमलोग रात्रि के पश्चात् सूर्य को देखते हैं। ऐसा ही महान पुरुष वेद है। उसको जानकर मृत्यु को पार कर जाता है। अन्य मार्ग नहीं जाने जाते।
अन्वयाः
हे पूषन् ! सत्यस्य मुखं हिरण्मयेन पात्रेण अपिहितं ( वर्तते ), तत् सत्यधर्माय (मह्यं ) दृष्टये अपावृणु ॥ 1 ॥
हिंदी अर्थ – हे सूर्य ! ज्योतिर्मय आवरण से ढके हुए सत्य के मुख को सत्यधर्मवानों को प्राप्त करने के लिए उसे हटा दें ।
जन्तोः गुहायां निहित: ( अयम् ) आत्मा अणो: अणीयान्, महतः महीयान् ( च वर्तते ) अक्रतुः धातुप्रसादात् आत्मनः तम् महिमानं पश्यति, वीतशोकः ( च भवति ) । सत्यम् एव जयते अनृतं न ( जयते ) ॥ 2 ॥
हिंदी अर्थ – प्राणी के हृदयरूपी गुफा में सूक्ष्म से सूक्ष्मतर और महान से महानतम आत्मा स्थित | बुद्धिमान आत्मा के गौरव को देखते हैं । शोकरहित होते हैं।
सत्येन ( एवं ) देवयानः पन्थाः विततः ( वर्तते ), येन हि आप्तकामाः ऋषय: ( तत् सत्यं ) आक्रमन्ति यत्र सत्यस्य तत्परं निधानम् ( अस्ति ) ॥ 3 ॥
हिंदी अर्थ – सत्य ही जीता जाता असत्य नहीं । सत्य के द्वारा देवताओं के सवारी रूपी मार्ग का विस्तार होता है । इसके द्वारा ही ऋषियों ने सांसारिक इच्छाओं और आसक्तियों को त्याग दिया है । यहाँ वही सत्य है।
यथा नद्यः स्यन्दमानाः ( सत्यः ) नामरूपे विहाय समुदे अस्तं गच्छन्ति तथा (एव) विद्वान् नामरूपाद् विमुक्तः सन् (तं ) दिव्यम् परात्परं पुरुषम् उपैति ॥4॥
हिंदी अर्थ – जैसे नदियाँ नाम को छोड़कर प्रवाहित होती हुई विलीन हो जाती है,
प्रकार विद्वान नामरूप को छोड़कर परमतत्व को प्राप्त कर लेते हैं ।
अहं तमसः परस्तात् आदित्यवर्णम् एतं महान्तं पुरुषं वेद । तम् एव विदित्वा मृत्युम् अत्येति ( एतस्मात् पृथग् ) अन्यः पन्थाः अयनाय न विद्यते ॥5॥
हिंदी अर्थ – हमलोग रात्रि के पश्चात् सूर्य को देखते हैं । ऐसा ही महान् पुरुष वेद हैं । उसको जानकर मृत्यु को पार कर जाता है। अन्य मार्ग नहीं जाने जाते हैं ।
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